३श्रीमती गजानंद शास्त्रिणी–२
पं. रामखेलावन जी घबराकर बोले, 'आप जानते ही हैं ग्यारह साल के बाद लड़की जितना ही पिता के यहां रहती है, पिता पर पाप चढ़ता है। पंद्रह साल की है। सुंदर जोड़ी है। लड़की अपने घर जाए, चिंता कटे। जमाना दूसरा है।' मित्र को आशा बंधी। सहानुभूतिपूर्वक बोले, 'बड़ा जोर लगाना पड़ेगा, अगले साल हो तो बुरा तो नहीं?' पं. रामखेलावन जी चलते हुए रुककर बोले, 'अब इतना सहारा दिया है, तो खेवा पार ही कर दीजिए। बड़े आदमी ठहरे, कोई हमसे भी अच्छा तब तक आ जाएगा।' मित्र को मजबूती हुई। बोले, 'उनकी स्त्री का देहांत हुआ है, अभी साल भी पूरा नहीं हुआ। बरखी से पहले मंजूर न करेंगे। लेकिन एक उपाय है, अगर आप करें।' 'आप जो भी कहें, हम करने को तैयार हैं, भला हमें ऐसा दामाद कहां मिलेगा?' 'बात यह कि कुल सराधें एक ही महीने में करवानी पड़ेगीं, और फिर ब्रह्मभोज भी तो है, और बड़ा। कम-से-कम तीन हजार खर्च होंगे। फिर तत्काल विवाह। आप तीन हजार रुपए भी दीजिए। पर उन्हें नहीं। अरे रे! - इसे वे अपमान समझेंगे। हम दें। इससे आपकी इज्जत बढ़ेगी, और आखिर हमें बढ़कर उनसे कहना भी तो है कि बराबर की जगह है? हजार जब उनके हाथ पर रखेंगे कि आपके ससुरजी ने बरखी के खर्च के लिए दिए हैं, तब यह दस हजार के इतना होगा, यही तो बात थी। वे भी समझेंगे।' पं. रामखेलावन जी दिल से कसमसाए, पर चारा न था। उतरे गले से कहा, 'अच्छा बात है।' मित्र ने कहा, 'तो रुपए कब तक भेजिएगा? अच्छा, अभी चलिए : देख तो लीजिए, विवाह की बातचीत न कीजिएगा, नहीं तो निकाल ही देंगे। समझिए - पत्नी मरी हैं।' रामखेलावन दबे। धीरे-धीरे चलते गए। 'लड़की कुछ पढ़ी भी है? पढ़ती थी - तीन साल हुए, जब मैं गया था, गवाही थी - मौका देखने के लिए?' मित्र ने पूछा। 'लड़की तो सरस्वती है। आपने देखा ही है। संस्कृत पढ़ी है।' 'ठीक है। देखिए, बाबा विश्वनाथ हैं।' मित्र की तरह पर उतरे गले से कहा। रामखेलावन जी डरे कि बिगाड़ न दे। दिल से जानते थे, बदमाश है, उनकी तरफ से झूठ गवाही दे चुका है रुपए लेकर; लेकिन लाचार थे; कहा, 'हम तो आपमें बाबा विश्वनाथ को ही देखते हैं। यह काम आपका बनाया बनेगा।' मित्र हंसा। बोला, 'कह तो चुके। गाढ़े में काम न दे, वह मित्र नहीं, दुश्मन है।' सामने देखकर, 'वह शास्त्री जी का ही मकान है, सामने।' था वह किराये का मकान। अच्छी तरह देखकर कहा, 'हैं नहीं बैठक में; शायद पूजा में हैं।' दोनों बैठक में गए। मित्र ने पं. रामखेलावन जी को आश्वासन देकर कहा, 'आप बैठिए। मैं बुलाए लाता हूं।' पं. रामखेलावन जी एक कुर्सी पर बैठे। मित्रवर आवाज देते हुए जीने पर चढ़े। जिस तरह मित्र ने यहां रोब गांठा था, उसी तरह शास्त्री जी पर गांठना चाहा। वह देख चुका था, शास्त्री खिजाब लगाते हैं, अर्थ - विवाह के सिवा दूसरा नहीं। शास्त्री जी बढ़-चढ़कर बातें करते हैं, यह मौका बढ़कर बातें करने का है। उसका मंत्र है, काम निकल जाने पर बेटा बाप का नहीं होता। उसे काम निकालना है।